सूरज से मेरे दादाजी / शार्दुला नोगजा
सूर्य किरण फिर आज पहन के एक घड़ी जापानी
कमरे में आयी सुबह-सवेरे, मिन्नत एक ना मानी
हाय! तिलस्मी सपनोंं में मैं मार रहा था बाज़ी
और हैं दादा जी, "जल्दी उठ्ठो" आवाज़ लगा दी !!
बिल्कुल मेरे दादू जैसा ही है ये सूरज भी
सुबह इसे आराम नहीं, ना देर रात धीरज ही !
"जल्दी सोना, जल्दी उठना", यही राग ये गाते
ऊपर से हर रोज़ एक सा गाते, गीत सुनाते !
"*नाक में उंगली, कान में तिनका
मत कर, मत कर, मत कर !
दाँत में मंजन, आँख में अंजन
नित कर, नित कर, नित कर !"*
ज़रा कहो तो "टूथ ब्रश" को मंजन कौन है कहता ?
और कौन सी नाक ना जिसमें आंगुर घुसा है रहता !
आँख में अंजन, यानी काजल, मैं लगाऊं ? पागल हूँ !!
दादा जी जो सूर्य चमकते, मैं चंचल बादल हूँ !
लड़ता रहता हूँ मैं उनसे, हम हैं यार घनेरे
माँ के बाद वही तो हैं ना सबसे अपने मेरे
अपने मन की बात सभी मैं झट उनसे कह देता
और ना सोता रात में जब तक किस्से ना सुन लेता !
दादा जी ने ही सिखलाया, नहीं माँगना कुछ ईश्वर से
और नहीं कुछ माँगा करता मैं भी दादा जी के डर से
एक बात बस आप से कहता, दादाजी को नहीं बताएं
हूँ मैं चाहता मेरे बच्चों को दादू ही गा के उठाएं !
सूरज से मेरे दादाजी!
मेरे काबा, मेरे काशी !