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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
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<poem>
ही बजाओत अहाँ कें हमर बेर-बेर
ईतऽ मर्जी अहाँ कें सुनू ने सुनू।

लट लटकल मुंह पर साओन जकाँ
ओहिमे चमकैत बिजुरी सन काजर नयन
मोन होइयै कि छाहरि तऽर मे रही
ई तऽ मर्जी अहाँ कें कहू ने कहू।

ठोर पर कैक टा धार बनल अछि प्रिय
हो कोशी वा कमला करेह-बलान
धार बहि ने रहल छैक ओहि मे प्रिय
धार अविरल बहाओ रहल अछि मधु।

धैर्य टूटि रहल अछि हमर मोन कें
ठाढ़ छी हम जोड़ने हाथ दुनू
मोल बजबाक देब अमोल प्रिय
ई तऽ मर्जी अहाँ कें कहू ने कहू।
</poem>
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