भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाज फरल सौन्दर्य / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
ही बजाओत अहाँ कें हमर बेर-बेर
ईतऽ मर्जी अहाँ कें सुनू ने सुनू।
लट लटकल मुंह पर साओन जकाँ
ओहिमे चमकैत बिजुरी सन काजर नयन
मोन होइयै कि छाहरि तऽर मे रही
ई तऽ मर्जी अहाँ कें कहू ने कहू।
ठोर पर कैक टा धार बनल अछि प्रिय
हो कोशी वा कमला करेह-बलान
धार बहि ने रहल छैक ओहि मे प्रिय
धार अविरल बहाओ रहल अछि मधु।
धैर्य टूटि रहल अछि हमर मोन कें
ठाढ़ छी हम जोड़ने हाथ दुनू
मोल बजबाक देब अमोल प्रिय
ई तऽ मर्जी अहाँ कें कहू ने कहू।