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11:41, 25 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सांवर दइया
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<poem>
अेक सुपनो हुवै टाबर री आंख में
भायलां सागै
रमतो-रमतो बणावै बो
रेत रौ घर
खुद बणावै
खुद ई मिटावै
साची ई मिटावै
साची कैवे मां-
टाबर भगवान रौ रूप हुवै।
</poem>