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10:02, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
रूई रै कारखानै सूं
निकलेड़ै मजूर रै
चिपक्या है
अणथाक जाळा
अै चिपक्या हुसी
ईं रै भीतर ई
पण किणनै दिखै बै
न इण नै न कारखानै रै
धणी नै
बै निगै आसी
स्यात अेक दिन
सफाखानैआळी मसीन नै।
</poem>
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