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10:14, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
दो-तीन बिहारी भईया
ले आया है परिवार ई
जमा राख्या है- आछा काम-धंधा
आदमी तो आदमी है
सौ जिग्यां आवै-जावै
बगत कट ज्यावै
पण लुगायां ?
नीं किणी सूं जाण-पिछाण
नीं बोलण-बतलावण
जावै तो कठै जावै ?
देस, नातै-रिस्तां री
घणी ओळ्यूं आवै
पण बठै री भूख री ओळ्यूं
सो कीं बिसरावै।
</poem>
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