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10:41, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
भलांई
कित्ता ई
डूबेड़ा हुवां आपां
आपणै सै’रीपणै में
आ ई ज्यावै
कदे-कदे नींद में
छुटेड़ो गांव
घर
अर खेत।
</poem>
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