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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
'''अेक'''

पेड़ कटग्या
गरमी बधगी
परदूसण है भारी
जण कुरळावै -
अब के आवैगी बरसात
साची ..
इयां के मरणदयै
आ कुदरत आपां नै
आपां इयां ई
छोड़ दयां धीजो ।

'''दो'''

मानां कै छेकड़
बरसग्या बादळ
पण
इण स्यूं पैली
कितणी ई आंख्यां
बरस‘र धापगी ।

'''तीन'''

बिरखा आवै ई कियां
बिरखा नै बुलावणियां
मोरियां नै तो आपां
रैवण नीं दिया ।
</poem>
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