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09:45, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
भारतीय जन-मानस नै
दुःःख-दाळद स्यूं
बा‘र निकळन री
कोसिस करतां
देखणो होवै तो
देखै कोई
दिवाळी रै दिन
पटाकां-मिठाइयां री
दुकानां रो तो
कैणों ही के
सब्जीआळी दुकानां तक
देखीजै
भीड़ ।
</poem>
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