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होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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06:18, 19 मई 2015
क़ुदरत की तो लाठी की सदा तक नहीं आती
है नाम 'रक़ीब' अपना तभी तो मेरे नज़दीक
दुनिया की कोई खौफ-ओ-
आफ़त का हो क्या ज़िक्र
बला तक नहीं आती
</poem>
SATISH SHUKLA
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