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हे ईश्वर ! प्रेम कितना ज़्यादा है / पेटर रोज़ेग्ग
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20:51, 31 जुलाई 2015
गिर रही हैं पत्तियाँ बलूत की
गर्मियाँ बीत चुकी हैं
चुम्बनों की प्रतीक्षा में होंठ
ये
हैं
गर्मियाँ रीत चुकी हैं
उल्लुओं के कोटर में शोर है
होंठ चाहते हैं फिर चुम्बन
ज्यों
जो
मई में चूमाचाटी कर विभोर है
सूखे हुए औ’ फटे हुए हैं होंठ
अनिल जनविजय
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