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हे ईश्वर ! प्रेम कितना ज़्यादा है / पेटर रोज़ेग्ग

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गिर रही हैं पत्तियाँ बलूत की
गर्मियाँ बीत चुकी हैं
चुम्बनों की प्रतीक्षा में होंठ हैं
गर्मियाँ रीत चुकी हैं

रोएँ चारों ओर उड़ रहे हैं
उल्लुओं के कोटरों में शोर है
होंठ चाहते हैं फिर चुम्बन
जो मई में चूमाचाटी कर विभोर हैं

सूखे हुए औ’ फटे हुए हैं होंठ
रंग गुलाबी उनका फीका पड़ चुका है
चाहते हैं वे प्रेम का लम्बा चुम्बन
पर मई का महीना अब गुज़र चुका है

हे ईश्वर ! प्रेम कितना है ज़्यादा
लेकिन समय नहीं बचा है आधा
अनन्त है ये प्रेममार्ग अनन्त है
प्रेम अमर है, प्रेम का न कोई अन्त है

रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय