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01:53, 28 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विष्णुकांत पांडेय
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>चींटी ने वह चाँटा मारा
गिरा उलटकर हाथी,
सरपट भागे गदहे-घोड़े
भागे सारे साथी।
धूल झाड़कर हाथी बोला-
‘माफ करो हे रानी-
अब न कभी लड़ने जाऊँगा
जरा पिला दो पानी।’
</poem>
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