1,130 bytes added,
16:49, 2 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>रात है, मौन हैं, सन्नाटा है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है
झील, चांदनी, हवा, तनिक सुनकी
नाव डमन सी तैरे बह बहकी
गाता है, क्रौंच है, अघाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है
रतिक सुगबुगी ज़वा, क्षणिक सिहरी
देह ध्रुपद-सी सैरे री हहरी
प्राण है, सौंध है, कँपाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है
आग लीलती, अवा, अधिक जलती
और कामायनी बुनकर पढ़ती
रास है, नृत्य है, नचाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है
</poem>