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{{KKRachna
|रचनाकार=सरस्वती कुमार दीपक
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<poem>ताक लगाकर बैठी थीं,
मालिन की डलिया में तरकारी!
अवसर पाया, ताक-धिना-धिन
नाच उठीं सब बारी-बारी!
नींबू और टमाटर लुढ़के,
उछल पड़े तरबूजे,
काशीफल के साथ बजाते,
ढोल मगन खरबूजे!
ककड़ी अकड़ी और थाप-
कसकर तबले पर उसने मारी!
कद्दू काट मृदंग बनाकर,
नाची भिंड़ी रानी,
नीबू काट मंजीरों पर
कहती अनमोल कहानी,
बीच बजरिया, नाच निराला-
जमकर देख रहे नर-नारी!
लौकी गोभी नाक सिकोड़े,
सेम मेम-सी नाचे,
आलू और कचालू ने, थे
बोल मटर के बांचे,
पालक बालक जैसा डोले
चुलबुल मैथी की छवि न्यारी!
</poem>
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