भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ उठा नाची तरकारी / सरस्वती कुमार दीपक
Kavita Kosh से
ताक लगाकर बैठी थीं,
मालिन की डलिया में तरकारी!
अवसर पाया, ताक-धिना-धिन
नाच उठीं सब बारी-बारी!
नींबू और टमाटर लुढ़के,
उछल पड़े तरबूजे,
काशीफल के साथ बजाते,
ढोल मगन खरबूजे!
ककड़ी अकड़ी और थाप-
कसकर तबले पर उसने मारी!
कद्दू काट मृदंग बनाकर,
नाची भिंड़ी रानी,
नीबू काट मंजीरों पर
कहती अनमोल कहानी,
बीच बजरिया, नाच निराला-
जमकर देख रहे नर-नारी!
लौकी गोभी नाक सिकोड़े,
सेम मेम-सी नाचे,
आलू और कचालू ने, थे
बोल मटर के बांचे,
पालक बालक जैसा डोले
चुलबुल मैथी की छवि न्यारी!