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<poem>करती हवा बहुत शैतानी!बादल गरजे, धूम मची,दूर-दूर तक दौड़ लगातीगरमी बीती जान बची,इस पर उस पर धूल उड़ाती।आँखों में हरियाली है,यहाँ-वहाँ के कचरे लाकरबातों में खुशहाली है,बिखरा जाती घर-आँगन भर।बार-बार करती मनमानीबूँदों का स्वर ऐसा है,करती हवा बहुत शैतानीजैसे गुड्डी रानी का!मौसम आया पानी का!
चाहे जिसके बाल हिलातीसँभले पाँव किसानों के,कपड़े तितर-बितर कर जाती।भड़का देती तेज-आग कोबदले गाँव किसानों के,बुझाचहल-बुझा देती चिराग को।अनदेखी, जानी-पहचानीपहल है खेतों में,करती हवा बहुत शैतानी! पर जब-जब वह डाल हिलातीजल ही जल है खेतों में,और टपाटप फल टपकाती।हमें सहेली-सी लगती धरती ऐसे भीज गई है,एक पहेली-सी लगती है।सिर-आँखों पर यह नादानी,जैसे आँचल नानी का!करती हवा बहुत शैतानीमौसम आया पानी का!
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