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सर्दी आई / मदनगोपाल शर्मा

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<poem>ठिठुरन कंपन
अकड़ दिखाती
ठंड पड़ रही भारी,
सूरज भैया छिपकर बैठे
शायद भूले पारी।
मुनिया डर कर नहीं नहाई,
बीती बरखा सर्दी आई!

चुनमुन चिड़िया
आज न निकली
लगा रात है बाकी,
धुंध बहुत है
कुहरा छाया
काँपें बूढ़ी काकी,
बैठी रहती ओढ़ रजाई!

सच में मौसम
तनिक न अच्छा
परेशान हैं सारे,
किसी काम में
मन न लगता
बैठे हैं मन मारे,
काम चलेगा कैसे भाई?
</poem>
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