615 bytes added,
17:02, 4 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कुछ शब्दों के जादूगर हैं
यहाँ कुछ हैं मुसव्विर ख़्वाबों के
मैं हूँ एक अकेला पंथी
सूनी-सूनी राहों का
मन चंचल है मन भीरू भी
दुनियाँ की राहें अनजानी
काश कभी मुमकिन हो पाता
साथ किसी की बाहों का
</poem>