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|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
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कुछ शब्दों के जादूगर हैं
यहाँ कुछ हैं मुसव्विर ख़्वाबों के
मैं हूँ एक अकेला पंथी
सूनी-सूनी राहों का
मन चंचल है मन भीरू भी
दुनियाँ की राहें अनजानी
काश कभी मुमकिन हो पाता
साथ किसी की बाहों का
</poem>