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00:28, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>तड़बड़ बजता ताशा,
मीठा लगे बताशा।
मार करारा झापड़,
तोड़ा हमने पापड़।
फड़-फड़ उड़े दुपट्टा,
मारे चील झपट्टा।
छत पर बोले कौआ,
उड़े गगन कनकौआ।
भिन्नाता है मच्छर,
बोझा ढोता खच्चर।
सट-सट लगता कोड़ा,
सरपट दौड़े घोड़ा।
बैठ कार में कुत्ता,
पहुँच गया कलकत्ता।
मेरी प्यारी बिल्ली,
देख चुकी है दिल्ली।
मार तुकों में मुक्का,
बन जाएगा ‘तुक्का’!
</poem>