540 bytes added,
21:39, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गंगासहाय 'प्रेमी'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>हाऊ-हाऊ हप्प,
एक सुनाऊँ गप्प।
बाबा जी की दाढ़ी,
झरबेरी की झाड़ी।
उस दाढ़ी के अंदर,
घुसे बीसियों बंदर।
करते खों-खों, खों-खों।
यूँ ही बीते बरसों।
</poem>