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<Poem>
न अन्न कम पड़ता है
न जल

किस के हाथ उठाते हैं कौर

कौन जीमता है
थाल से
अदृश्य
रसोई में

उमगती कंठ में
हिचकी
काँपता जलपात्र

ईश्वर
ये तुम हो

जूठा जिसे रास आता
मेरा !
</Poem>
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