न अन्न कम पड़ता है
न जल
किस के हाथ उठाते हैं कौर
कौन जीमता है
थाल से
अदृश्य
रसोई में
उमगती कंठ में
हिचकी
काँपता जलपात्र
ईश्वर
ये तुम हो
जूठा जिसे रास आता
मेरा !
न अन्न कम पड़ता है
न जल
किस के हाथ उठाते हैं कौर
कौन जीमता है
थाल से
अदृश्य
रसोई में
उमगती कंठ में
हिचकी
काँपता जलपात्र
ईश्वर
ये तुम हो
जूठा जिसे रास आता
मेरा !