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15:26, 6 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>मैं न भूला,
है न छूटी राह,
मेरे पास हर दिन तो
नया अर्थ आ लगा है;
इति नहीं जिसकी.
मैं न डूबा,
है न खोया आज तक अस्तित्व.
मेरी भुजाओं में हर दिन
नया बल भर गया है;
रिक्ति नहीं जिसकी.
मैं न ऊबा,
है न छोड़ा अनवरत संघर्ष,
मेरे प्राण में हर दिन नया विश्वास
ही तो आ बसा है;
जय सदा जिसकी.
पंथ में मेरे नहीं विश्राम,
पराजय में भी नहीं विश्वास
संघर्ष ही आदान और प्रदान.
मैं न भूला,
मैं न डूबा,
मैं न ऊबा.
</poem>