भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं न भूला / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं न भूला,
है न छूटी राह,
मेरे पास हर दिन तो
नया अर्थ आ लगा है;
इति नहीं जिसकी.

मैं न डूबा,
है न खोया आज तक अस्तित्व.
मेरी भुजाओं में हर दिन
नया बल भर गया है;
रिक्ति नहीं जिसकी.

मैं न ऊबा,
है न छोड़ा अनवरत संघर्ष,
मेरे प्राण में हर दिन नया विश्वास
ही तो आ बसा है;
जय सदा जिसकी.

पंथ में मेरे नहीं विश्राम,
पराजय में भी नहीं विश्वास
संघर्ष ही आदान और प्रदान.
मैं न भूला,
मैं न डूबा,
मैं न ऊबा.