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कथा मेरी / रामनरेश पाठक

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कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
व्यथा मेरी असुनी ही रही,
सुनी नहीं होगी.

मीत के संग-संग तिरोहित
प्राण होते.
धरा के नभ में विलोपित
गान होते.

सांध्य से कुछ दूर की
दूरी नहीं होगी.
शिला का मदुर मधु-संगीत
मजबूरी नहीं होगी.

कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
चिता मेरे सपन की जल चुकी,
दूरी नहीं होगी.

</poem>
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