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15:28, 10 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>बेबसी के तंग घेरे की तरह
घुट रहा है दम अँधेरे की तरह.
खो गया रब मज़हबों की भीड़ में
सोन चिड़िया के बसेरे की तरह.
वायदों की करिश्माई बीन पर
वो नाचता है सपेरे की तरह.
ज़िन्दगी के रास्तों पर ताक में
वक़्त बैठा है लुटेरे की तरह.
धुप से रोशन इरादों के लिए
फुट कर देखो सवेरे की तरह।
</poem>
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