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05:07, 8 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>इन्तजार की दाँयी आँख दुखते ही
कान का दर्द बढ गया
आधे सर की पीड़ा भी गजब है
एक साथ होता है
सुख-दुख का बोध
इन्तजार के नाम नहीं आती कोई दवा
सिवाय इन्तजार के
अब थपकी देने का समय आया पलकों को
नीन्द दूर तक कहीं नहीं
दर्द-निवारक जरुरी है
सपनों की आमद के लिए
कि कोई मीठा दर्द न हो मन में तो
चैन नहीं आता
इन्तजार के करार के नाम
लिख छोड़ा तुम्हें !</poem>
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