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11:41, 13 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>बूढ़ी गौरैया के पंख थके
निकले सभी खोखले दाने
खेत पुराने हैं
अगले दिन को
बहलाने के कई बहाने हैं
आँधी-पानी में
बरगद के सारे घाव पके
लौटें कैसे बौने सूरज
बँटे घोंसलों में
खोजें कैसे महक हवाएँ
जली कोंपलों में
नई छाँव से
टूटे रिश्ते पिछले आँगन के
</poem>
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