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18:51, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>हम नेवार की खटिया कस देते
सीधी हो जाती बाबा की कमर
उनके उठाये हाथ के आशीष में
मेरे गाल के थपथपाने में
बाबा की आश्वस्त मुस्कराहट में
मुझे दिखा करता था बसंत
बसंत याद से खटिया के नीचे रखे
लोटे के पानी में भरा रहता है
मैंने देखा है बसंत
बाबा के पायताने बैठी गुडिय़ा
बतियाती रहती है दुनिया-जहान
बाबा की झपकती आंख
चल भाग यहां से, की झूठ में
बसंत गुदगुदी करता खिलखिलाता
और उनके चादर में
अपना मुंह ढांप सो जाता।
</poem>
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