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पायताने बैठ कर ७ / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
हम नेवार की खटिया कस देते
सीधी हो जाती बाबा की कमर
उनके उठाये हाथ के आशीष में
मेरे गाल के थपथपाने में
बाबा की आश्वस्त मुस्कराहट में
मुझे दिखा करता था बसंत
बसंत याद से खटिया के नीचे रखे
लोटे के पानी में भरा रहता है
मैंने देखा है बसंत
बाबा के पायताने बैठी गुडिय़ा
बतियाती रहती है दुनिया-जहान
बाबा की झपकती आंख
चल भाग यहां से, की झूठ में
बसंत गुदगुदी करता खिलखिलाता
और उनके चादर में
अपना मुंह ढांप सो जाता।