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10:14, 20 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
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<poem>देह की माटी पर
उगेंगे हरे पौधे
हवाओं की सीटियों से
कंपकपाएंगे नए पत्ते
थरथराती एक शाम
उकड़ू बैठेगी छांव तले
तुम धूप बन कर आना
मैं पेड़ की सबसे ऊंची फुनगी से गिरूंगी
बूंद बनकर
तुम्हारी हथेलियों में
तुम फिर माटी कर देना मुझे...।</poem>