Changes

कमाल की औरतें ३९ / शैलजा पाठक

828 bytes added, 10:21, 20 दिसम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>लड़कियां पक के तैयार हैं अब काट दो
लड़कियां अकेली मिलें तो बांट लो

अबकी बो लो लड़कियों के बीज
धरती-धरती को लेकर सो जायेगी
जमीं बंजर हो जायेगी

छोटी सी पायल में खनकेगा ƒघर का आंगन
शीशे में चिपकी बिंदी आग सी दहकेगी

तुम हाथ सेंकना।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits