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रोये कोई / कमलेश द्विवेदी

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<poem>दर्द किसी का रोये कोई.
बोझ किसी का ढोये कोई.

जागे कोई बस इस गम में-
सेज किसी की सोये कोई.

कितना मुश्किल है ये सहना-
खेत किसी का बोये कोई.

ऐसे रिश्ते को क्या कहिये-
दाग किसी का धोये कोई.

सोचो ऐसा क्यों होता है-
याद किसी की खोये कोई.
</poem>
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