भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोये कोई / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द किसी का रोये कोई.
बोझ किसी का ढोये कोई.

जागे कोई बस इस गम में-
सेज किसी की सोये कोई.

कितना मुश्किल है ये सहना-
खेत किसी का बोये कोई.

ऐसे रिश्ते को क्या कहिये-
दाग किसी का धोये कोई.

सोचो ऐसा क्यों होता है-
याद किसी की खोये कोई.