794 bytes added,
04:01, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>वो भी एक ज़माना था.
दिल उसका दीवाना था.
दूर बहुत था उसका घर,
फिर भी आना-जाना था.
डूबा रहता था अक्सर,
आँखें क्या, मैख़ाना था.
कुछ मुस्कानें पाया मैं,
उसके पास खज़ाना था.
राह मुड़ी सँग छोड़ गया,
उसको साथ निभाना था.
तब लगता था-अपना है,
अब लगता-बेगाना था.
</poem>