Changes

कुण है वो / मदन गोपाल लढ़ा

979 bytes added, 14:47, 15 जनवरी 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह= मंडाण / नी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
दुनिया रै
हरेक गांव में
पक्कायत लाधैला आपनैं
गाभा सीड़तो दरजी
बाळ काटतो नाई
अर टापरा संवारतो कारीगर।

दुनिया रै
हरेक घर में
आप जोय सको
काच, कांगसियो
अर तेल-फुलेल।

फूठरापै सारू आफळ
मानखै रो
जुगां-जूनो सुभाव है
पण कुण है वो
जको जद-कद
धूड़, धुंवै अर लाय सूं
बदरंग कर नाखै
मिनखपणै रो उणियारो।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,482
edits