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छात-दोय / विनोद स्वामी

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|रचनाकार=विनोद स्वामी
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
म्हारै
साळ री छात
तीन बर पडग़ी।

अबकाळै
फेरूं पड़ूं-पड़ूं करै
म्हे फेरूं
कच्ची छात लगास्यां।
</poem>
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