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ठाकुरजी / हरि शंकर आचार्य

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|रचनाकार=हरि शंकर आचार्य
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
ओ साच है
कै तूं
हां, तूं ही तो है,
कण मांय अर मण मांय।
दसूं दिसावां
आठूं पौर
तूं है सुलभ
अर सगतीमान।
जद ही तो होय जावै
थारा दरसण सोरै-सांस।
मिल जावै
माथो टेकतो
हर चौरायै अर मोड़ माथै
माचिस री बिना तील्यां री
डब्बी सूं लेय’र
खैणी रै रद्दी कागद तांई।
</poem>
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