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समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का / अकबर इलाहाबादी
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08:48, 10 मई 2008
वर्तनी ठीक की है।
करने जो नहीं देते बयाँ हालते-दिल को <br>
सुनिएगा लबे-
गोर
ग़ौर
से अफ़साना किसी का <br><br>
कोई न हुआ रूह का साथी दमे-आख़िर<br>
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