|संग्रह=खिड़कियाँ / अशोक चक्रधर
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<poem>
माना, तू अजनबी है
और मैं भी, अजनबी हूँ
डरने की बात क्या है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
माना, तू अजनबी है<br>हूं मैं भी एक इंसांऔर मैं तू भी, अजनबी हूं<br>एक इंसांडरने की ऐसी भी बात क्या है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे<br><br>दे।
हूं मैं भी एक इंसां<br>ग़म की घटा घिरी हैऔर तू भी एक इंसां<br>है ग़मज़दा साऐसी भी बात क्या रस्ता जुदा-जुदा है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे !<br><br>दे।
ग़म की घटा घिरी है<br>
तू भी है ग़मज़दा सा<br>
रस्ता जुदा-जुदा है<br>
ज़रा मुस्कुरा तो दे !<br><br>
हांहाँ, तेरे लिए मेरा<br>और मेरे लिए तेरा<br>चेहरा नया-नया है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे।<br><br>
तू सामने है मेरे<br>मैं सामने हूं तेरे<br>युं ही सामना हुआ है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे<br><br>दे।
मैं भी न मिलूं शायद<br>तू भी न मिले शायद<br>इतनी बड़ी दुनिया है<br>ज़रा मुस्कुरा तो दे।<br/poem>