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ज़रा मुस्कुरा तो दे / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
माना, तू अजनबी है
और मैं भी, अजनबी हूँ
डरने की बात क्या है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
हूं मैं भी एक इंसां
और तू भी एक इंसां
ऐसी भी बात क्या है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
ग़म की घटा घिरी है
तू भी है ग़मज़दा सा
रस्ता जुदा-जुदा है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
हाँ, तेरे लिए मेरा
और मेरे लिए तेरा
चेहरा नया-नया है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
तू सामने है मेरे
मैं सामने हूं तेरे
युं ही सामना हुआ है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।
मैं भी न मिलूं शायद
तू भी न मिले शायद
इतनी बड़ी दुनिया है
ज़रा मुस्कुरा तो दे।