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12:30, 30 अप्रैल 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मंगत बादल
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<poem>
थे देखी होसी जांवती कदी ?
कठी नै गई,
बा लारली सदी !
जाबक डोकरी,
उमर ली पूरी सौ साल !
घणा ई झेल्या बापड़ी,
जुद्ध अर काळ ।
अखीर चली गई
रोती-धोती, कळपती,
हथियारां सूं लदी ।
बा लारली सदी ।
कीं करिस्मा
ग्यान-विग्यान रा
कीं खारी-मीठी याद,
कीं तोड़गी, कीं जोड़गी,
कीं फरमागी, कीं फरियाद
करगी,लारै छोडगी
कीं नेकी, कीं बदी!
बा लारली सदी।
</poem>