भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थे देखी होसी जांवती कदी ? / मंगत बादल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
थे देखी होसी जांवती कदी ?
कठी नै गई,
बा लारली सदी  !

जाबक डोकरी,
उमर ली पूरी सौ साल !
घणा ई झेल्या बापड़ी,
जुद्ध अर काळ ।

अखीर चली गई
रोती-धोती, कळपती,
हथियारां सूं लदी ।
बा लारली सदी ।

कीं करिस्मा
ग्यान-विग्यान रा
कीं खारी-मीठी याद,
कीं तोड़गी, कीं जोड़गी,
कीं फरमागी, कीं फरियाद

करगी,लारै छोडगी
कीं नेकी, कीं बदी!
बा लारली सदी।