गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने / ज़ाहिदा जेदी
No change in size
,
09:22, 8 मई 2016
कुछ और थे इस दौर में जीने के करीने
हर जाम लहू-रंग था
देखो
देखा
ये सभी ने
क्यूँ शीशा-ए-दिल चूर था पूछा न किसी ने
हेमंत जोशी
Mover, Uploader
752
edits