{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
कोमल करिया रं छै, मोहै सगरो जहानसुन कोयल तों मत बोल कुछु बिजली पीताम्बर के भान दरसावै छै बरसात झमाझम छौ लखनी ।रस घनघोर कठोर निनाद करै स्वर दादुर झिंगुर के समुद्र उमड़ैलें नभ मंडल झखनी ।।चुपचाप रहें तरु खोढ़र मेंघनबनि केॅ चिपकें-घन के नादोॅ में बौंसली बजावै छै चिपकें एखनी ।बौगला के पाँती मोती माला सोहै केसोॅ परकरिहें मृदु गायन पंचम में, विविध विलास मुक्त रस बरसावै छै ।सावनोॅ के बादलोॅ के रूप धरी ‘श्री उमेश’व्रज के बिहारी लाल नन्दलाल आवै छै ।रितु कन्त वसन्त जगौ जखनी ।।
</poem>