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क्षणिकाएँ-1 / विपिन कुमार मिश्र
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03:59, 26 जुलाई 2016
<poem>
1
काटै तेॅ सब्भे
छैµ
छै-
हम्में हुनकोॅ खेत काटै छियै
आरो हुनी हमरोॅ पेट काटै छै !
2
हुनियो गनै छै !
आरो हम्हू गनै
छियैµ
छियै-
हुनी नोट गनै छै
आरो हम्में तारा !
4
कत्तेॅ उत्तम विचार
छैµ
छै-
बेचारा पर चारा डालै छै ।
</poem>
Rahul Shivay
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