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परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ असर -अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में ख़ुदा के फज्ल<ref>मेहरबानी</ref> फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं है ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की कसम क़सम कुछ-कुछ
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको जो चलने की सई<ref>कोशिश</ref> की तो, हैं लरजीदा<ref>लड़खड़ाते</ref> उनके पाँव में छाले, तो लरज़ीदा क़दम कुछ-कुछ
मेरे एहसास पर भी छा, गई वहदानियत<ref>एकत्व</ref> देखो मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ
करीब क़रीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो 'रक़ीब' अपना मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ-कुछ
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