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ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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22:19, 5 अगस्त 2016
है सरापा शबाब से लबरेज़
माह रुख़
या
गुलाब है कोई
जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
जैसे चेहरा किताब है कोई
</poem>
SATISH SHUKLA
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