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17:11, 18 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
पीन पयोधर शम्भु नहीं कल,
::काम कमान भ्रुवैं छबि छाजत।
है विपरीत जु नासिका कीर,
::लखे अलकावलि जालन भाजत॥
देखिये तो घनप्रेम दोऊ दृग,
::आनन पैं कहिबे की न हाजत।
है जहँ पूरन इन्दु प्रकास,
::विकास तहीं अरविन्द विराजत॥
</poem>
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